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संविधान किसी से जबरन शारीरिक इच्छापूर्ण करने की अनुमति नही देता

रिपोर्ट महिपाल शर्मा


बलात्कार एक घोर अपराध माना गया है देश का संविधान किसी से जबरन शारीरिक इच्छापूर्ण करने की अनुमति नही देता।चाहे वह आपकी धर्मपत्नी ही क्यो नही।सम्पूर्ण विश्व मे बलात्कार की कठोर सजा का प्रावधान है।कि देशों में तो बीच चौराहे पर इस जघन्य अपराध की सजा सिर्फ मौत है कही बीच चौराहे पर बलात्कारी को फांसी पर लटका दिया जाता है तो कही गोलियों से सरेआम भून दिया जाता है।

बता दें कि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अपनी पत्नी से बलात्कार के आरोपी पति के खिलाफ आरोप तय करने को बरकरार रखा है। अदालत ने कहा, बलात्कार बलात्कार होता है, चाहे वह किसी पुरुष द्वारा किसी महिला पर किया गया हो या किसी पति द्वारा अपनी पत्नी पर।

बुधवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कर्नाटक हाई कोर्ट की बेंच ने आरोपी पति पर पत्नी से बलात्कार के आरोप को बरकरार रखा। मामले में टिप्पणी करते हुए बेंच ने कहा, “एक पुरुष जो किसी महिला का यौन उत्पीड़न या बलात्कार करता है, आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय है। विद्वान वरिष्ठ अधिवक्ता का तर्क है कि यदि पुरुष पति है, तो वह वही कार्य करता है जो दूसरे पुरुष के समान कार्य करता है, उसे छूट है। मेरे विचार से, इस तरह के तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। एक आदमी एक आदमी है; एक कृत्य एक कृत्य है और रेप रेप है, चाहे वह एक पुरुष द्वारा महिला पर किया गया हो, या पति द्वारा पत्नी पर।”

हाई कोर्ट ने आगे कहा कि वरिष्ठ अधिवक्ता का यह निवेदन है कि पति अपने किसी भी कार्य के लिए विवाह संस्था द्वारा संरक्षित है, और मेरे विचार में, विवाह का मसतब यह कतई नहीं कि किसी शख्स को विशेष पुरुष विशेषाधिकार या क्रूर जानवर जैसा व्यवहार करने का लाइसेंस प्रदान मिल जाए। यदि यह एक पुरुष के लिए दंडनीय है, तो यह एक पति के लिए भी उतना ही दंडनीय होना चाहिए।

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हालांकि कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि यह विधायिका के लिए है कि वह इस मुद्दे पर विचार करे और छूट के बारे में भी विचार करे। यह न्यायालय नहीं बता रहा है कि वैवाहिक बलात्कार को अपराध के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए या इस अपवाद को विधायिका द्वारा हटा दिया जाना चाहिए। इस मुद्दे पर विधायिका को विचार करना चाहिए। यदि बलात्कार के आरोप को कथित अपराधों के खंड से हटा दिया जाता है, तो यह शिकायतकर्ता पत्नी के साथ घोर अन्याय होगा।

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