हरिद्वार में होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव पर लग सकता है ब्रेक
पंचायत चुनाव की तैयारी कर रहे प्रत्याशियों को सरकार ने बड़ा झटका दिया है। सत्ताधारी पार्टी ने आरक्षण करते समय सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन नहीं किया, जिससे चुनाव को अनिश्चित काल के लिए खिसकाना पड़ा है। पहले पूरे जिले की जातिगत जनगणना होगी, जिसमें एक से डेढ़ साल का समय लग जाएगा, इसके बाद ही चुनाव संभव हो सकेंगे। चुनाव में होने से ग्राम सभाओं में विकास कार्य प्रशासक ही करते रहेंगे।सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ओबीसी यानी पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या के हिसाब से आरक्षण करने के आदेश दिए थे। इस आदेश का पालन सभी राज्यों को करना होता है, लेकिन उत्तराखंड राज्य सरकार ने हरिद्वार जनपद मैं होने जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण का पालन नहीं किया, बल्कि मनमानी करते हुए संविधानिक आरक्षण का ही पालन किया. जिसके खिलाफ प्रताप सिंह और एक अन्य व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन कराने के लिए याचिका में चले गए, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से काउंटर मांग लिया। सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का उल्लंघन होता देख राज्य सरकार सकते में आ गई। जिसके लिए आनन-फानन में पिछड़ा वर्ग आयोग की समिति का गठन कर दिया, जिसके अध्यक्ष पूर्व न्यायाधीश ब्रह्म सिंह वर्मा को बनाया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार हरिद्वार जनपद की जातिगत जनगणना की जाएगी। जनगणना करीब 1 से डेढ़ साल में पूरी होगी. और इसके बाद ही चुनाव कराने के लिए दोबारा से आरक्षण होगा। इससे माना जा रहा है कि फिलहाल चुनाव नहीं होंगे. आरक्षण की प्रक्रिया करने में एक से डेढ़ साल का समय लग जाएगा. इससे चुनाव की तैयारी कर रहे प्रत्याशियों को बड़ा झटका लगा है. विपक्ष के नेताओं ने भाजपा की राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा है। जिला पंचायत के पूर्व चेयरमैन सुभाष वर्मा का कहना है कि भाजपा की सरकार हरिद्वार जनपद में चुनाव नहीं करना चाहती थी. सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी पालन नहीं किया गया. सूत्रों की माने तो राज्य सरकार राज्य के अन्य 12 जिलों के साथ ही त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव करना चाहती है. इसके लिए हर बार कोई ना कोई झंझावात डालती रहेगी. ग्राम सभा के विकास कार्य प्रशासकों के हवाले ही रहेंगे.
हरिद्वार जनपद के जानकारों की माने तो ओबीसी 65% मतदाता है. यदि सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन किया गया तो त्रिस्तरीय पंचायत के अधिकांश प्रतिनिधि पिछड़ा वर्ग की जातियों के ही होंगे. इससे पिछड़ा वर्ग की जाति के लोगों में खुशी की लहर है. वे पहले भी जो आरक्षण पर सवाल उठा रहे थे.