हरेला पर्व प्रकृति से प्रेम, नव फसल की खुशियां व आपसी प्रेम का रहा प्रतीक : शबनम जहाॅ
हरिद्वार।
हरेला पर्व आदिकाल से अपनी परंपराओं और रिवाजो द्वारा प्रकृति प्रेम और प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी और प्रकृति की रक्षा की सद्भावना को दर्शाता आया है। इसीलिये उत्तराखंड को देवभूमी और प्रकृति प्रदेश भी कहा जाता हैं। प्रकृति को समर्पित उत्तराखंड का लोकप्रिय हरेला पर्व प्रत्येक वर्ष कर्क संक्रांति को, श्रावण मास के पहले दिन यह त्योहार मनाया जाता है। यह उक्त विचार मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की हरिद्वार विभाग संयोजिका व राष्ट्रवादी पसमांदा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच की प्रदेश अध्यक्ष शबनम जहाॅ ने प्रेस के समक्ष साझा किए हैं। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में विशेष रूप से मनाया जाने वाला यह त्यौहार, प्रकृति प्रेम के साथ साथ कृषि विज्ञान को भी समर्पित है। दस दिन की प्रक्रिया में मिश्रित अनाज को देवस्थान में उगाकर, कर्क संक्रांति के दिन हरेला काटकर यह त्योहार मनाया जाता है। और कहा जाता है कि इस दिन से दिन रत्ती भर घटने लगते है। और रातें बड़ी होती जाती हैं। और प्रकृति की रक्षा के प्रण के साथ पौधे लगाएं जाते हैं। शबनम जहाॅ ने प्राकृति की रक्षा के लिए सभी से अधिक से अधिक पौधे लगाने की अपील भी की और कहां कि अगर हम ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाएंगे और उनकी अच्छी तरह से देखभाल कर उनको बड़ा करेंगे, तो वृक्ष हमें अनैको गुणों भरा वातावरण देंगें। और हमारा स्वास्थ्य भी स्वस्थ रहेगा। और आने वाली हमारी पीढ़ी भी अच्छे वातावरण में खुली सांस ले सकेंगी। उनके शरीर बीमारियों से लड़ने की क्षमता रखेंगे और उनकी उम्र में भी इजाफा होगा। उन्होंने संगठन की प्रत्येक महिला से ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करने की अपील की, और पौधों को समय-समय पर खाद, जल उपलब्ध कराने के साथ-साथ उनकी सुरक्षा के लिए गंभीरता रखने जैसे उक्त विचार प्रेस के समक्ष रखे है।