हज़रत इमाम हुसैन ने जुल्म का खात्मा कर इंसानियत का दिया पैगाम : भारत सरकार मंत्रालय सदस्य मोहम्मद आरिफ
हरिद्वार।
इमाम हुसैन अपने नाना जान पैगम्बरे-इस्लाम का दीन बचाने के लिए कर्बला के मैदान में अपनी कुर्बानी पेश करने के लिए आए थे। उन्होंने बचपन में अपने नाना जान से इस अजीम कुर्बानी का वादा किया था और कर्बला में वही वादा वफा किया। यह उक्त विचार राष्ट्रवादी पसमांदा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के जिलाध्यक्ष वह हरिद्वार जिला सदस्य राष्ट्रीय निगरानी समिति सोशल जस्टिस भारत सरकार मंत्रालय से मोहम्मद आरिफ साहब ने प्रेस के समक्ष व्यक्त किए हैं। उन्होंने कहा कि इमाम अली, इमाम हसन के कातिल नकाब में छुपे रह गए, लेकिन हज़रत हुसैन ने अपने कातिल को रहती दुनिया तक के लिए बेनकाब कर दिया है। शराब के नशे में चूर रहने वाला व जुए के शौकीन और जुल्मी यजीद के जुल्म के खौफ से उस समय के अनेक धर्मगुरु या तो छुप गए थे या उन्होंने इंसानियत के दुश्मन यजीद के सामने समर्पण कर दिया था। और यजीद ने यह हुक्म दिया था कि हुसैन या तो उसकी खिलाफत को कबूल करें या उन्हें मार दिया जाए। इमाम हुसैन ने यजीद के सामने समर्पण करने से बेहतर शहीद होना समझा। हुसैन अगर यजीद को खलीफा मान लेते तो आज दुनिया में हकीकी इस्लाम का नाम लेने वाला कोई नहीं होता। उन्होंने बताया कि हजरत इमाम हुसैन मानवता, मोहब्बत और अहिंसा के प्रतिक थे। वह बहुत बड़े इबादत गुज़ार थे। और रात भर अल्लाह पाक की इबादत में लगे रहते थे। उन्होंने बताया कि रात की इबादत के बाद दिन में वह इलाके में रह रहे गरीबों की मदद करते थे। उनके हमदर्द बनते थे, उनके दुख को समझते थे। उनकी खुशियों में शरीक होते थे और खुशियां बाँटते थे। मोहम्मद आरिफ ने कहां कि दुनिया को इंसानियत का पैगाम देने वाले, जुल्मी और जुल्म का खात्मा करने वाले हज़रत इमाम हुसैन की शिक्षाओं पर चलना चाहिए। उनके सब्र को अपनाना चाहिए, साथ ही समाज को अंधकार की ओर ले जाने वाले कार्यों का खात्मा करना चाहिए। यह उक्त विचार मोहम्मद आरिफ साहब ने प्रेस के समक्ष साझा किए हैं।