रुड़की।बीटी गंज (सुभाष गंज) की बेशकीमती भूखंड नगर निगम नहीं,बल्कि शहर की सियासत में उथल-पुथल मचाए हुए है।यह मामला नगर निगम को सीधे तौर पर प्रभावित कर रहा है।करोड़ों की सरकारी संपत्ति को बचाने के प्रयास में मेयर खुद मुसीबत लिए हुए हैं।सही मायने में बात करें तो आज जो मेयर के विरोधी अपने मन ही मन में उन्हें पद मुक्त मानकर चल रहे हैं तो वह यहीं बेशकीमती भूखंड ही है,जिसको लेकर तमाम तरह की साजिशें रची गई और इस बीच मेयर का अपुष्ट ऑडियो वायरल किया गया,अब यह बेशकीमती भूखंड की सच्चाई क्या है यह जानने का हक पूरे नगरवासियों को है,क्योंकि भूखंड किसी एक का नहीं,बल्कि नगर निगम का है जो कि कभी नगर निगम ने सिंचाई विभाग से लिया था यानी कि सरकार की संपत्ति है।हालांकि कुछ लोग इन भूखंड़ों के बारे में यही कहते रहे हैं कि नियमानुसार नवीनीकरण में कुछ लोग बाधा उत्पन्न कर रहे हैं,पर सच्चाई ठीक इसके उलट है।अब सबसे पहले जिला शासकीय अधिवक्ता दीवानी (डीजीसी) की उस रिपोर्ट का उल्लेख करते हैं,जो मांगे जाने पर डीजीसी की ओर से नगर आयुक्त,नगर निगम को भेजी गई।डीजीसी की ओर से रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि 1 अप्रैल 1947 को श्री राय बहादुर लाला मथुरादास रईस रुड़की के नाम 408 वर्ग फीट की प्रथम लीज डीड हुई थी,जो 31जुलाई 1947 से प्रभावी हुई,जिसमें नवीनीकरण का भी प्रावधान है,लेकिन इसमें भी राय बहादुर लाला मथुरा दास के सभी उत्तराधिकारियों द्वारा नवनीकरण कराए जाने का आवेदन किया जाता है तो नवीनीकरण की आवश्यक औपचारिकताएं पूर्ण करने पर ही नवीनीकरण में कोई विधिक बाधा नहीं है।कहने का तात्पर्य है कि सब पक्षकारों की ओर से नवीनीकरण के लिए इस भूखंड का आवेदन किया जाए,परन्तु ऐसा हुआ नहीं।
इसके अलावा 21 नवंबर 1954 को ओमप्रकाश पुत्र लाला मथुरादास के हित में द्वितीय लीज 60 फीट गुणा 20 फीट यानी कुल 1200 वर्ग फीट की व तृतीय लीज डीड 23 जुलाई 1950 को ओमप्रकाश पुत्र राय बहादुर लाला मथुरादास के नाम 60 फीट गुणा 20 फीट यानी 1200 वर्ग फीट हुई। यह तीनों लीज डीड 2808 वर्ग फीट की की गई थी।408 वर्ग फुट की पहली लीज को छोड़कर बाद की दोनों लीज एक अप्रैल 1952 से 30 साल यानी 31 मार्च 1982 तक प्रभावी थी।उक्त् लीज डीड के पृष्ठ संख्या दो पर नवीनीकरण संबंधी कोई प्रावधान नहीं है,बल्कि नवीनीकरण संबंधी लिखे गए प्राविधान को काटकर दोनों पक्षों द्वारा अपने हस्ताक्षर कर दिए गए हैं जो कि पृष्ठ संख्या दो पर कटिंग पढ़े जा सकते हैं।ऐसे में दोनों पक्षों की स्वीकृति व सहमति पर उचित प्रभाव नहीं रह जाता।साफ है कि यहां पर कटिंग का मतलब बड़ी फोर्जरी हुई है और इस बेशकीमती भूखंड को कब्जाने की शुरूआत हुई,हालांकि बाद में निर्धारित शुल्क नगर निगम के खाते में जमा कराया गया परन्तु नवीनीकरण का शुल्क किस अधिकारी के आदेश पर जमा कराया गया है इस बारे में नगर निगम के रिकॉर्ड में कहीं कोई उल्लेख नहीं है,यानी कि बड़ा भू-घोटाला हुआ है,जिसका खुलासा अब मेयर गौरव गोयल द्वारा इस भूखंड के नवीनीकरण पर एतराज करने के बाद हो सका है।यह बात अलग है कि नगर निगम के अधिकारियों ने इस भूखंड के नवीनीकरण कराने में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ी।इस बीच सुबोध गुप्ता की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई कि उनके भूखंड की लीज का नवीनीकरण नहीं किया जा रहा है तो आदेश हुआ। नगर निगम बोर्ड की एक बैठक हुई,जिसमें हाथ उठाकर प्रस्ताव पारित नहीं किया गया बल्कि एक जैसा मजमून लिखकर पार्षदों के हस्ताक्षर कराकर भूखंड के नवीनीकरण का प्रस्ताव पारित कर दिया गया।इसके कुछ दिनों बाद ही नगर आयुक्त की ओर से निदेशक शहरी विकास को लीज के नवीनीकरण करने का प्रस्ताव बोर्ड में पारित हो जाने का हवाला देते हुए लिखित सिफारिश की गई। पर इसकी जैसे ही सूचना मेयर गौरव गोयल को मिली तो उन्होंने निदेशक शहरी विकास निदेशालय,उत्तराखंड देहरादून को पत्र लिखकर इन भूखंड के बारे में स्थिति स्पष्ट की और कहा कि जिस भूखंड के लिए अवधि 31 मार्च 1982 को स्वत: ही समाप्त हो चुकी है,उनका नवीनीकरण करना विधिक नहीं है और यदि इसमें कोई भी नवीनीकरण कराए जाने की कोशिश कर रहा है तो वह सरकार की संपत्ति को खुर्द-बुर्द करना चाहता है।उन्होंने साफ तौर पर लिखा है कि भूखंड को आवासीय उपयोग के लिए आवंटित किया गया था,लेकिन तीनों भूखंड का व्यवसायिक उपयोग हुआ है ।पंजाब नेशनल बैंक से लंबे समय तक किराया वसूला गया है,इसीलिए इस भूखंड की लीज का नवीनीकरण न किया जाए।यहां पर बता दे कि जब मेयर के पत्र और काफी पार्षदों व सामाजिक संगठनों की आपत्ति के बाद भी नवीनीकरण की व्यवस्था बनाए जाने की कोशिश हुई तो इस बीच राकेश अग्रवाल नाम के व्यक्ति ने हाई कोर्ट में रिट दायर की,जिसमें कहा गया है कि नगर निगम के बेशकीमती भूखंडों को हथियाने की कोशिश हो रही है,जिसमें अधिकारियों की संलिप्तता भी सामने आ रही है।हाईकोर्ट ने मामले को गंभीरता को देखते हुए इस संबंध में निदेशक शहरी विकास निदेशालय,उत्तराखंड देहरादून से जवाब मांगा है।इसमें नगर निगम रुड़की और जिलाधिकारी हरिद्वार को भी पक्षकार बनाया गया है।अब जाकर इसकी लीज नवीनीकरण की प्रक्रिया थमी है,लेकिन इसको लेकर जो सियासत हो रही है वह अभी भी जारी है।बता दें कि वे यही बेशकीमती भूखंड है जिसको लेकर बड़ा गेम हुआ है।इसमें ही कहा गया है कि मेयर ने रिश्वत मांगी है।इसी बातचीत की अपुष्ट वीडियो भी वायरल किया गया है और अधिकारियों को भी दिखाया जा रहा है,हालांकि इससे संबंधित मुकदमे की विवेचना जारी है जो जांच समिति ने भी इस बात को साफ तौर पर कहा है कि जब तक विवेचना जारी है और इसकी मूल डिवाइस नहीं मिल जाती है तो इस बारे में कुछ भी कहना उचित नहीं है,किन्तु मेयर का विरोधी खेमा यह मानता है कि बेशकीमती भूखंड के नवीकरण केस को लेकर ही वह पद मुक्त होंगे।यहां पर यह भी बता दिया जाना नगर हित में होगा कि इस भूखंड का सौदा भी हो चुका है।वैसे तो बाजार की कीमत के हिसाब से इस भूखंड की कीमत पन्द्रह करोड से अधिक आंकी गई है,लेकिन जानकारी मिल रही है कि दस करोड में सौदा हुआ है।बेचने वाला और खरीदने वाला कौन है। इस बारे में तहकीकात हो रही है।अब इस पूरे मामले में यह बात साफ हो गई है कि नगर निगम यानी सरकार के भूखंड को बचाने के लिए मेयर ने जो भागदौड़ की उसी का परिणाम है कि उनके खिलाफ तमाम तरह की साजिश रची गई।शिकायत की गई जोकि सुनी सुनाई है।अब इस भूखंड को लेकर सुबोध गुप्ता अपना हक जता रहे हैं,लेकिन भूखंड का नवीनीकरण किस आधार पर किया जाए,इसको लेकर वह ठोस आधार नहीं बता रहे हैं। कह रहे कि सबके भूखंड की नवीनीकरण हो रहा है तो उनका भी होना चाहिए। लेकिन जब उनसे सवाल किया जाता है कि उन्हीं भूखंडों का लीज नवीनीकरण सही है जोकि 90 साल तक के लिए आवंटित हुए हैं।आपके तो दो भूखंडों का आवंटन तो मात्र 30 साल के लिए हुआ था तो वह चुप्पी साध जाते हैं,वहीं शहर में बुद्धिजीवी वर्ग इस बात को मान रहा है कि यदि मेयर गौरव गोयल ने सरकार के बेशकीमती भूखंड को बचाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं तो इसमें उन्होंने कोई गुनाह नहीं कर दिया है।यदि इस तरह की साजिशों से डरा जाएगा तो फिर सरकारी संपत्ति को बचाने के लिए कभी कोई आगे नहीं आएगा।इसलिए इस मामले पर शहरवासियों की जागरूकता जरूरी है।