दीन ए इस्लाम बचाने के लिए इमाम हुसैन ने दी कर्बला में कुर्बानी : भारत सरकार मंत्रालय सदस्य मोहम्मद आरिफ
हरिद्वार।
इंसानियत को बचाने और जुल्म के खात्मे के लिए हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को इस्लामी तारीख में हमेशा याद किया जाता रहेगा। पैगंबर इस्लाम नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहिवालेह वसल्लम के प्यारे नवासे हज़रत इमाम हुसैन का जन्म इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 3 शाबान चार हिजरी,दिन सोमवार(8 जनवरी 626 ईस्वी)को हुआ था। हजरत हुसैन की मां रसूले पाक हज़रत मोहम्मद की सबसे प्यारी बेटी हज़रत फातिमा थी। आपके वालिद का नाम हजरत अली था। हज़रत इमाम हुसैन का ज्यादातर वक्त अपने नाना हज़रत मोहम्मद सल्ल. के साथ ही गुजरा, इसलिए हज़रत मोहम्मद ने हीं उनका पालन पोषण किया। आप हज़रत इमाम हुसैन से बेपनाह मोहब्बत भी किया करते थे। एक बार की बात है कि जब हज़रत मोहम्मद का हज़रत फातमा के घर के आगे से गुजरना हुआ तो आपको हज़रत इमाम हुसैन के रोने की आवाज सुनाइ दी, आप फौरन हज़रत फातमा के पास गए और कहा कि बेटी तू इस बच्चे को रुला कर मुझे दुख देती है। इतना प्यार था हज़रत मोहम्मद सल्ल. को अपने नवासे हजरत इमाम हुसैन से। हज़रत इमाम हुसैन का अपने नाना और सहाबा-ए-कराम की सरपरस्ती में पले बढ़े, इसलिए हज़रत इमाम हुसैन के अंदर वे सभी विशेषताएं आ गई थीं जो उनके नाना में थी। सच बोलना, इंसाफ करना, सब्र करना, धैर्य, सच्चाई, सहनशक्ति, हमदर्दी और अमन-शांति का संदेश देना। यह सब खूबियां भी हजरत इमाम हुसैन के अंदर आ आ चुकी थीं, इसलिए उन्होंने कभी जुल्म के आगे घुटने नहीं टेके और उस समय के जालिम यजीद बादशाह जिसका जुल्म और अन्याय का राज क्षेत्र में था, लेकिन इंसानियत को बचाने और जुल्म को मिटाने, इस्लाम का झंडा बुलंद करने के लिए हज़रत इमाम हुसैन अपने साथियों के साथ माह मोहर्रम की दसवीं तारीख को कर्बला में शहादत की मिसाल पेश की। और दीन ए इस्लाम बचाने के लिए इमाम हुसैन ने कर्बला में कुर्बानी दी। जालिम यजीद बादशाह की हजारों की संख्या में फौज का मुकाबला कई दिनों तक भूखे प्यासे रहकर हज़रत इमाम हुसैन और उनके साथियों ने किया, जब भूख और प्यास से तड़प रहे 6 माह के हजरत अब्बास को भी जालिम यजीद की फौज ने गले में तीर मार कर शहीद कर दिया और इमाम हुसैन के साथ जंग में बची औरतों को कैद कर जालिम यजीद के सामने लाया गया तो उस जालिम बादशाह ने उनकी भी बेअदबी की। आज इस शहादत के दिन मुसलमान जहां रोजा रखकर उन्हें खिराजे अकीदत पेश करते हैं तो वहीं भूखे और गरीबों की मदद करके भी उन्हें सवाब पहुंचाते हैं। कुछ फिरके के लोग ताजिए, अखाड़ा और मातम करके भी इस शहादत के दिन को याद करते हैं। कर्बला की इस तारीख से हमें यह सबक मिलता है कि हम एक अल्लाह और एक रसूल के मानने वाले हैं इसलिए सदा हकपरस्ती, ईमानदारी, हमदर्दी और सत्यता के मार्ग पर चल कर किसी भी जुल्म के खिलाफ अपने हक की रक्षा के लिए शहादत देने के लिए तत्पर रहना चाहिए। यह उक्त विचार राष्ट्रवादी पसमांदा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच संगठन के हरिद्वार जिलाध्यक्ष व राष्ट्रीय निगरानी समिति भारत सरकार मंत्रालय के हरिद्वार सदस्य मोहम्मद आरिफ ने प्रेस के समक्ष साझा किए है।