कर्बला ए जंग न दौलत के लिए थी ना जमीन के लिए, यह जंग थी सिर्फ हक व बातिल और इमान के लिए : भारत सरकार मंत्रालय सदस्य मो० आरिफ
हरिद्वार।
इस्लामिक कैलेंडर के पहले महीने का नाम मोहर्रम है। इसी महीने से इस्लाम धर्म का नया साल शुरू होता है। मोहर्रम के महीने में इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद साहब के नवासे हज़रत इमाम हुसैन और उनके 72 अनुयायी कर्बला में जालिम यजीद की फौज के साथ लड़ते हुए शहीद हुए थे। यहां तक की जालिम यजीद ने छोटे-छोटे मासूम बच्चों को भी नहीं बख्शा और यजीद की फौज ने उनको भी कत्ल कर दिया था। जालिम यजीद इस्लाम धर्म को अपने तरीके से चलाना चाहता था। हर शख्स से अपनी बात व अपने कानून को मनवाना चाहता था। हज़रत इमाम हुसैन का मकसद दीन ए इस्लाम को बचाना था। जो कर्बला में उन्होंने अपनी कुर्बानी देकर बचाया है। उन्हीं की याद में अखाड़े खेले और ताजिये निकाले जाते हैं।वहीं बुधवार को ज्वालापुर में मोहर्रम के अवसर पर हकीकतमंदो ने अखाड़े खेलने का सिलसिला शुरू किया। अखाड़ा खलीफा व उस्तादों के नेतृत्व मे नौजवानों ने अखाड़े में अलग-अलग करतब दिखाकर अकीदतमंदो को अपनी ओर आकर्षित भी किया है। पूरे शहर में अलग अलग जगह हलीम, हलवा, खीर, शरबत, केले, सेब, बिस्कुट, चाये आदि बांटी गई है। मोहजीज लोगों ने हज़रत इमाम हुसैन की शहादत पर रोशनी डालते हुए नातिया कलाम पड़े और बड़ी अकीदत से सलाम पेश किए गए है। वही ईशा की नमाज अदा कर ताजिया जुलूस निकाले गए। ताजिया जुलूस लोधामंडी, बकरा मार्केट होते हुए रोशन अली पीर बाबा की दरगाह मंडी के कुएं पर इकट्ठा होकर कर्बला की ओर रवाना हुए। जुलूस में हुसैन जिंदाबाद के नारों से पूरा शहर गूंजता रहा और हर शख्स के चेहरे पर हज़रत इमाम हुसैन की शहादत का वाक्य झलक रहा था। और वह एक ही नारा लगा रहे थे। कि हुसैन जिंदाबाद, हुसैन जिंदाबाद। इस अवसर पर सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद रहे। शांति व्यवस्था बनाने के लिए ज्वालापुर कोतवाली प्रभारी रमेश तनवार पुलिस जवानों के साथ जुलूस पर नजरे गड़ाए हुऐ थे। पुलिस जवान भी अपने कर्तव्य के प्रति जुलूस में चुस्त दिखाई दिए है। खुफिया विभाग भी सतर्क रहा और जुलूस शांतिपूर्ण संपन्न हुआ है। वही मोहर्रम के अवसर पर राष्ट्रवादी पसमांदा मुस्लिम राष्ट्रीय मंच संगठन के जिलाध्यक्ष व राष्ट्रीय निगरानी समिति सोशल जस्टिस भारत सरकार मंत्रालय के जिला हरिद्वार सदस्य मोहम्मद आरिफ साहब ने बताया कि कर्बला ए मैदान की जंग न तो दौलत के लिए थी, न जमीन के लिए। यह जंग थी सिर्फ हक व बातिल और इमान के लिए। उन्होंने बताया कि इमाम हुसैन की शहादत इस्लाम को जिंदा रखने और रसुल की आंखों की ठंडक नमाज़ को कायम रखने के लिए थी।