बुरे कामों से तौबा करने का महीना है रमजान,मुस्लिम बुद्धिजीवियों ने कही ये बातI
रिपोर्टर नफीस
रुड़की।गुजरे दो वर्षों से कोरोना महामारी के चलते रमजान के महीने में काफी बंदिशें रहीं।देश-दुनिया में जहां कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लगा,वहीं इसका असर धार्मिक स्थलों पर भी होने वाली गतिविधियों पर पड़ा।सीमित संख्या में हर धर्म के लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए अपने-अपने तरीके से धार्मिक रस्में पूरी की।इस बार के रमजान में मुस्लिम समाज के लोगों में इबादत को लेकर काफी उत्साह नजर आ रहा है।बड़ी तादाद में लोग पवित्र रमजान के महीने में नमाजें अदा कर रहे हैं।रमजान इबादत का महीना है और इसी महीने में अल्लाह का पवित्र कुरान पाक इस दुनिया में नाजिल हुआ।पिरान कलियर विधायक हाजी फुरकान अहमद,अफजल मंगलौरी, डॉक्टर नैयर काजमी,हाजी नौशाद अहमद,डॉक्टर जीशान अली तथा हाजी शहजाद अंसारी का कहना है कि रमजान का पवित्र महीना इंसान को अपने बुरे कामों से तौबा करने का अवसर देता है।बुराई का त्याग कर वह अच्छे कामों को करने का संकल्प ले।शरीयत के हवाले से इन मुस्लिम बुद्धिजीवियों का कहना है कि अल्लाह ताला ने मुसलमानों पर रोजे इसलिए फर्ज किये कि वह अपने अंदर फरहेजगारी और तकवा पैदा करे।अल्लाह ताला प्रत्येक वर्ष रमजान में इंसान को यह अवसर देता है कि वह अपने बुरे कामों का त्याग कर अच्छे कामों को करें।रमजान का महीना एक-एक मिनट बहुत कीमती होता है।रमजान की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस महीने में हर एक नेक काम का बदला सत्तर गुणा अधिक मिलता है।रमजान में मुसलमानों को अपने पूरे साल की माल व दौलत की जकात निकालने के साथ-साथ अधिक से अधिक गरीब,जरूरतमंद,असहाय लोगों की मदद करनी चाहिए।